रवीन्द्र केलेकर – पतझर में टूटी पत्तियाँ

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रवीन्द्र केलेकर – पतझर में टूटी पत्तियाँ
पतझर में टूटी पत्तियाँ" रवीन्द्र केलेकर द्वारा लिखित एक गहन आत्ममंथनात्मक और दर्शनपरक रचना है, जिसमें लेखक ने मानव जीवन के क्षरण, संवेदनाओं, और समय की गति को प्रतीकात्मक रूप से प्रस्तुत किया है।
पतझर की टूटी पत्तियाँ केवल पेड़ों से झरती पत्तियाँ नहीं, बल्कि वे अनुभव, रिश्ते, स्मृतियाँ, और जीवन की समाप्त होती अवस्थाएँ हैं, जो चुपचाप बिखरती हैं।
केलेकर का लेखन भावनात्मक रूप से गहन, लेकिन भाषा में सरल और आत्मीय होता है, जो पाठक को अंतर्मन की ओर मोड़ देता है।
यह रचना विद्यार्थियों को संवेदनशील दृष्टिकोण, मूल्यांकन की दृष्टि, और चिंतनशील लेखन शैली को समझने में सहायक होती है।
"पतझर में टूटी पत्तियाँ" एक ऐसा पाठ है जो मौन में छिपे शब्दों और ख़ामोशी में छिपे जीवन दर्शन से पाठक को जोड़ता है।
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