निदा फाजली – अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

3
120
निदा फाजली – अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले
निदा फ़ाज़ली की यह कविता एक गंभीर सामाजिक यथार्थ को उजागर करती है—आज के समय में लोगों में संवेदनशीलता और सहानुभूति का अभाव।
कविता में कवि यह प्रश्न उठाते हैं कि पहले जहाँ दूसरे के दुख में शामिल होने वाली आत्माएं थीं, अब वे क्यों नहीं दिखाई देतीं।
यह रचना एक मूल्यहीन होते समाज और मानवीय रिश्तों में बढ़ती दूरी की ओर ध्यान आकर्षित करती है।
सरल और प्रभावशाली भाषा में लिखी गई यह कविता पाठकों के भीतर आत्मचिंतन, सामाजिक जागरूकता, और संवेदनशीलता की भावना जगाती है।
विद्यार्थी इस कविता के माध्यम से न केवल कविता की शैली और भावार्थ समझते हैं, बल्कि सामाजिक मूल्यों के क्षरण को भी पहचानते हैं।
यह रचना आज के युग में वैयक्तिकता और भावनात्मक दूरियों पर एक गहन टिप्पणी है, जो हर पाठक को भीतर तक झकझोर देती है।
Didn’t Find What You Need?
Looking for a fresh resource, a different version, or a custom format? We’ll create it just for you!